भभकता सूरज, गर्म हवाए, सूखती धरती..
मरते लोग...सब कुछ तो ठीक था....
हर साल यही तो होता हे..
फिर भी स्कूल से लौटी छुटकी ने
थेला रखकर आँगन मे..
जाने कौनसा गीत गाने लगी..
जोर-जोर से चिल्लाने लगी..
कि मानसून आने वाला हे
भाई मानसून आने वाला हे..
सत्तर पार की संतो काकी..
बैचेन होकर चारपाई से उतरी..
उछलती छुटकी का हाथ दबोचा..
लकडी से डराकर कहने लगी..
"मुई पेट भरने को दाना नहीं..
पानी का भी ठिकाना नहीं
घर की इस बिगडी हालत मे
किसको न्योता दे आई"
कि मानसून आने वाला हे
भाई मानसून आने वाला हे..
इतने मे छुटकी हाथ छुड़ाकर
भागी सरपट दुम दबाकर
गोद मे जाकर अपनी माँ को
हस-हसके समझा ने लगी
फिर दोनों उठकर बीच आँगन मे
हसते-हसते गाने लगी..
कि मानसून आने वाला हैं
भाई मानसून आने वाला हैं..
लछमन चाचा घर पर आया
उसको भी सबने समझाया
पुराने छप्पर को नया बनाओ
सूखे होज़ को साफ कराओ
इस बार ये पानी बह न जाए
छुटकी गौर से, बात बताने लगी..
कि मानसून आने वाला हैं
भाई मानसून आने वाला हैं ..
सूखी धरती पर हरियाली होगी
गायों कि बात निराली होगी
जब मिलेगा उनको खूब चारा
फिर बदलेगा वक़्त हमारा
देख आसमा, लछमन चाचा
मन ही मन गुनगुनाने लगा
कि मानसून आने वाला हैं
भाई मानसून आने वाला हैं..
अब संतो कि समझ में आया
दुआ में उसने हाथ उठाया
घर में फिर खुशहाली लादे
राधा कि फिर गोद भरादे
गीले आँगन में खेलता मुन्ना
सोच-सोच, इतराने लगी
बूढी आँखों से आंसू छलका कर
अब संतो काकी गाने लगी
कि मानसून आने वाला हैं
भाई मानसून आने वाला हैं..
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